कार्तिक महीने की पूर्णिमा इस बार 2 दिनों की पड़ रही है। ऐसे में जब पूर्णिमा 2 दिनों की होती है तब पहले दिन व्रत आदि की पूर्णिमा और दूसरे दिन स्नान-दान की पूर्णिमा मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर दो शुभ योग भी बन रहे हैं। दरअसल, 27 नवंबर सोमवार के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और शिव योग का संयोग रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग का आरंभ दोपहर 1ः35 बजे पर होगा और अगले दिन यानी 28 नवंबर को सुबह 6ः24 बजे तक रहेगा।
सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी ने बताया कि जिस दिन पूर्ण रूप से चंद्रमा उदय होता है उसी दिन व्रतादि की पूर्णिमा मनाई जाती है और आज आकाश मंडल में पूर्ण रूप से चंद्रमा उदयमान रहेगा। पूर्णिमा तिथि में सूर्योदय के समय स्नान-दान का महत्व बताया गया है और पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय सोमवार को होगा। इसलिए स्नान-दान की पूर्णिमा 27 नवंबर को मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान दान का शुभ मुहूर्त
27 नवंबर को अमृत चौघड़िया सुबह 6ः52 बजे से 8ः11 बजे तक।
शुभ चौघड़िया सुबह 9ः30 बजे से 10ः49 बजे तक।
इन दो शुभ मुहूर्त में आप पूर्णिमा का स्नान और दान कर सकते हैं।
मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन श्री हरि विष्णु जी स्वयं गंगाजल में निवास करते हैं। पूर्णिमा पर दिए गए दान-दक्षिणा का फल कई गुना होकर हमें वापस मिलता है। पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद तिल, गुड़, कपास, घी, फल, अन्न, कंबल, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। साथ ही किसी जरूरतमंद को भोजन कराना चाहिए। शास्त्रों में इस दिन सबसे अधिक प्रयागराज में स्नान-दान का महत्व बताया गया है, लेकिन अगर आप कहीं बाहर नहीं जा सकते तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें।
देव दीपावली के दिन पृथ्वी पर होता देवताओं का आगमन
26 नवंबर को त्रिपुरोत्सव भी मनाया जाएगा। इसे त्रिपुरारि पूर्णिमा भी कहते हैं। माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर त्रिपुरासुर नमक दैत्य के अत्याचार को समाप्त किया था, जिसकी खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था, इसलिए इस उत्सव को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। देव दीपावली का त्योहार अधिकतर उत्तर प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गंगा नदी और काशी के विभिन्न तटों पर आज के दिन मिट्टी के अनगिनत दीपों को जला कर पानी में प्रवाहित किया जाता है। कई नदियों के घाटों पर आज नौकाओं को सजाकर नदी में भी तैराते हैं।
कहते हैं आज देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके स्वागत में धरती पर दीप जलाए जाते हैं। संध्या के समय शिव-मंदिर में भी दीप जलाए जाते हैं। शिव मंदिर के अलावा अन्य मंदिरों में, चौराहे पर और पीपल के पेड़ व तुलसी के पौधे के नीचे भी दीये जलाए जाते हैं। दीपक जलाने के साथ ही आज भगवान शिव के दर्शन करने और उनका अभिषेक करने की भी परंपरा है। ऐसा करने से व्यक्ति को ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है।
देव दीपावली के दिन विशेष रूप से काशी में बाबा विश्वनाथ का पंचोपचार विधि से पूजन किया जाता है और उनकी महा आरती की जाती है। इसे काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस का नाम दिया गया है। साथ ही आज के दिन तुलसी दल से नर्मदेश्वर शिवलिंग का पूजन भी किया जाता है। नर्मदा नदी से निकले शिवलिंग को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम का भय नहीं होता है। आज इनका पूजन करने से सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।