वैदिक काल से चली छठ पूजा का महत्व अब केवल बिहार तक सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी प्रवासी बिहारवासियों के साथ अन्य समुदाय के लोग भी श्रद्धा के साथ यह पर्व मनाने लगे हैं। छठ व्रत कथा के अनुसार, छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना है। कथा के अनुसार देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि उन्हें छठी माता कहा जाता है, जो सम्पूर्ण प्रकृति को भगवान सूर्यदेव के साथ मिलकर धारण किए हुए हैं।
सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन के अनुसार, षष्ठी 18 नवम्बर प्रातः 9 बजकर 19 मिनट के बाद से आरंभ होगी। व्रत पारण 20 नवम्बर को है इसलिए 18 से 20 नवम्बर तक घर में प्याज, लहसुन का सेवन किसी भी सदस्य को नहीं करना है। घर के बाकी लोग तीन दिन शराब के सेवन से भी बचें। घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। इन नियमों का पालन करने से व्रत करने वाले के संतान प्राप्ति और संतान के सुखमय जीवन की कामना फलीभूत होगी। गौरतलब है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखमय जीवन के लिए की जाती है।
छठ पूजा पर पांच चीजों का रखें विशेष ध्यान
– पूजा के दौरान चांदी, लोहा, स्टील और प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
– पूजा के दौरान मिट्टी के बर्तन, सोने और तांबे के बर्तन इस्तेमाल कर सकते हैं।
– जो महिला व्रत रखने वाली है वह तीन तीन तक व्रत जारी रहने तक जमीन पर कुशा के आसन पर सोए।
– नहाय खाय परंपरा में व्रत रखने पर नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण करे।
– व्रत करने वाली महिला को ही छठ का प्रसाद बनाना होगा। घर के बाकी सदस्य प्रसाद नहीं बनाएं।
छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व
किंवदंतियों के अनुसार, छठ पूजा प्रारंभिक वैदिक काल से प्रचलन में है, जहां ऋग्वेद के मंत्रों के साथ ऋषि कई दिनों तक उपवास करते थे और पूजा करते थे। छठ पूजा भी भगवान सूर्य के पुत्र और अंग देश के राजा कर्ण द्वारा की गई थी, जो बिहार में आधुनिक भागलपुर है।
एक अन्य किवदंती के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और युद्ध के उपरांत पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
छठ पूजा की तिथियां, अर्घ्य का समय और पारण समय
17 नवम्बर: नहाय-खाय। सूर्योदय: सुबह 6ः45 बजे। सूर्यास्त शाम 5ः27 बजे।
18 नवम्बर: खरना तिथि। सूर्योदय: सुबह 6ः46 बजे। सूर्यास्त शाम 5ः26 बजे।
19 नवम्बर: संध्या अर्घ्य का समय सूर्यास्त शाम 5ः26 बजे।
छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के सूप को सजाएं। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अर्घ्य दें।
20 नवम्बर: सूर्योदय सुबह 6ः47 बजे। छठ महापर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिए जाने की परम्परा है। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है।