सोलह सोमवार का व्रत कब और कैसे शुरू करें, जानें पूजा विधि सहित अन्य जानकारी

सोलह सोमवार का व्रत दांपत्य जीवन में खुशहाली लाने और मनपसंद जीवनसाथी पाने के लिए किया जाता है। सोलह सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। मान्यताओं के अनुसार, सोलह सोमवार का व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए आरंभ किया था। सोलह सोमवार को लेकर कई लोगों के बीच इस बात को लेकर असमंजस रहता है कि इसे कब से शुरू करना शुभ होगा। सोलह सोमवार का आरंभ श्रावण मास में सबसे अधिक शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं सोलह सोमवार व्रत कब से शुरू करें, इसकी पूजा विधि और अन्य जानकारी…

कब से आरंभ करें सोलह सोमवार व्रत? 

वैसे तो कार्तिक और मार्गशीर्ष माह में सोलह सोमवार का व्रत आरंभ किया जाता है, लेकिन श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार सबसे अच्छे माने जाते हैं। इस माह से सोलह सोमवार का व्रत रखना सबसे उत्तम होता है। इस साल सावन का पहला सोमवार 22 जुलाई 2024 को पड़ रहा है। इस दिन से आप सोलह सोमवार का व्रत आरंभ कर सकते हैं।

सावन में शुरू होने वाले सोलह सोमवार व्रत का महत्व

सोलह सोमवार का व्रत भगवान शिव की कृपा पाने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। साथ ही, कुंवारी लड़कियों के विवाह में आ रही समस्याएं भी दूर होती हैं और उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने महादेव को पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत की थी। इसलिए सावन मास से सोलह सोमवार का व्रत अवश्य आरंभ करें।

सोलह सोमवार का व्रत संकल्प

सावन के पहले सोमवार के दिन भगवान शिव के समक्ष 16 सोमवार का व्रत करने का संकल्प अवश्य लें। इसके बाद 17वें सोमवार को उद्यापन करें, तभी आपका व्रत पूर्ण होगा। व्रत का संकल्प लेने के लिए पहले सोमवार के दिन स्नान आदि करने के बाद हाथ में पान का पत्ता, सुपारी, जल, अक्षत और एक सिक्का लेकर शिव जी का मंत्र बोलें:

“ॐ शिवशंकरमीशानं द्वादशार्द्धं त्रिलोचनम्। उमासहितं देवं शिवं आवाहयाम्यहम्।”

फिर सभी वस्तुएं भगवान शिव को समर्पित कर दें।

सोलह सोमवार व्रत पूजा विधि 

सावन माह के पहले सोमवार को सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर नहाने वाले पानी में काले तिल डालकर स्नान करें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें। फिर दिनभर व्रत रखें। सोलह सोमवार का व्रत प्रदोष काल में करना सबसे शुभ माना जाता है, और सूर्यास्त से पहले आपकी पूजा हो जानी चाहिए।

घर में पूजा करते समय सबसे पहले शिवलिंग का अभिषेक करें। इसके लिए एक तांबे के पात्र में जल भरकर शिवलिंग पर अर्पित करें। फिर “ऊँ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद जल और गंगाजल से शिवलिंग का स्नान करवाएं। स्नान के बाद सफेद चंदन लगाएं।

चंदन के बाद विधिवत तरीके से शिवलिंग में बेलपत्र, धतूरा, आक का फूल, गन्ना, गन्ने का रस, पुष्प, अष्टगंध, सफेद वस्त्र, इत्र, भोग आदि चढ़ाएं। इसके बाद माता पार्वती की पूजा करें और उन्हें सोलह श्रृंगार अर्पित करें। भगवान शिव को भोग में चूरमा, खीर, बेर, नैवेद्य, मौसमी फल आदि अर्पित करें। फिर घी का दीपक और धूप जलाएं।

इसके बाद सोलह सोमवार की व्रत कथा पढ़ें। महामृत्युंजय मंत्र और शिव चालीसा का पाठ करें और अंत में शिव जी की आरती करें। ध्यान रखें कि भोग चढ़ाए गए चूरमे के अलावा अन्य किसी चीज का सेवन न करें। ऐसा अगले 16 सोमवार तक करते रहें।

कब करें सोलह सोमवार का उद्यापन

शास्त्रों के अनुसार, सोलह सोमवार का उद्यापन 16 सोमवार का व्रत रखने के बाद 17वें सोमवार को किया जाता है। इस दिन 16 जोड़े स्त्री-पुरुष को भोजन कराया जाता है। इसके साथ ही गेहूं के आटे का चूरमा भोग के रूप में बनाया जाता है।

 

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