पितृपक्ष का शुभारंभ हो चुका है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है, जो अमावस्या पर सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होती है। इन 16 दिनों में पितरों का तर्पण और पिंडदान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस समय पितर पृथ्वी पर वास करते हैं। इस दौरान, लोग अपने पितरों को जल अर्पित करते हैं और भोग लगाते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिस प्रकार देवी-देवताओं को नाराज करने पर जीवन में मुश्किलें बढ़ जाती हैं, उसी प्रकार पितर भी कुछ गलत कार्यों के कारण रुष्ट हो जाते हैं, जिससे पितृदोष उत्पन्न होता है। अगर आपकी कुंडली में भी पितृदोष है, तो पितृपक्ष के इन दिनों में एक सरल उपाय करने से लाभ मिल सकता है।
शास्त्रों के अनुसार, पितृदोष होने पर व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसे लगातार बीमार रहना, संतान सुख से वंचित होना, आर्थिक और मानसिक परेशानियां। अगर आप भी इन समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो पितृपक्ष में गाय को एक विशेष वस्तु खिलाने से आपको राहत मिल सकती है।
पितृदोष से मुक्ति के उपाय
शिवपुराण के अनुसार, यदि आपकी कुंडली में पितृदोष है या आप आर्थिक और शारीरिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो पितृपक्ष के दौरान एक सरल उपाय कर सकते हैं। किसी भी दिन एक रोटी लें, उसमें थोड़ा सा गुड़ या चीनी और थोड़े से चावल या खीर रख लें। फिर शिव जी के रुद्र के ग्यारह नामों में से एक “वृषाकपि” या “विषकृपी” का उच्चारण करते हुए, अपने घर के बाहर खड़े होकर यह रोटी गाय को खिला दें। ऐसा करने से घर में कभी धन-संपदा की कमी नहीं होती।
पितृपक्ष में गाय का महत्व
पितृपक्ष में गाय का खास महत्व है, इसलिए श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय माता को भी अर्पित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, गाय को वैतरणी से पार कराने वाली कहा गया है और उसमें देवी-देवताओं का वास होता है। गाय को भोजन कराने से देवी-देवता और पितर दोनों तृप्त और प्रसन्न होते हैं।